कोलकाता।। नेताजी
सुभाष चंद्र बोस की बेटी को आज भी इस बात का अफसोस है कि सरकारों ने उनके
पिता को ढूंढने के लिए बनाए गए आयोग की मदद नहीं की। उनका कहना है कि 1945
में उनके पिता के लापता होने के बाद जानकारी जुटाने के लिए बने आयोग को
सरकारों की तरफ से जरूरी समर्थन नहीं मिला।
नेता जी की बेटी अनीता बोस फाफ का कहना है, 'मुझे नहीं पता कि जांच आयोग को सरकार की तरफ से कितनी मदद मिली। शायद सरकारें कुछ मामलों में मददगार रहीं, लेकिन कई मामलों में आयोग को मुश्किलों का सामना करना पड़ा।' इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, 'जिस विमान दुर्घटना में मेरे पिता के निधन की बात कही जाती थी, उस दुर्घटना की जांच के लिए आयोग को ताइवान नहीं जाने दिया गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह राजनीतिक रूप से सही मौका नहीं था।'
अनीता ने कहा, 'मेरा मानना है कि इसकी जांच के लिए बने आखिरी आयोग (मुखर्जी आयोग) को डॉक्युमेंट्स के लिहाज से जरूरी समर्थन नहीं मिला। इसमें एक तरह की ढिलाई बरती गई, लेकिन मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं बता सकती कि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा और आयोग के सदस्यों का निजी अनुभव क्या रहा।' नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त, 1945 को कथित प्लेन क्रैश के बाद रहस्यमयी तरीके से लापता हो गए थे, जिसके बाद से केंद्र सरकार ने उनका पता लगाने के लिए तीन आयोगों का गठन किया। पहले दो आयोगों ने जहां विमान दुर्घटना और नेताजी के निधन की बात सही माना, लेकिन 1999 में बने तीसरे आयोग इस बात को स्वीकर नहीं किया। आयोग ने कहा कि उस दिन ताइवान में कोई विमान हादसा नहीं हुआ था।
मुखर्जी आयोग की आखिरी रिपोर्ट को 2006 में संसद में पेश किया, जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने खारिज कर दिया था।
नेता जी की बेटी अनीता बोस फाफ का कहना है, 'मुझे नहीं पता कि जांच आयोग को सरकार की तरफ से कितनी मदद मिली। शायद सरकारें कुछ मामलों में मददगार रहीं, लेकिन कई मामलों में आयोग को मुश्किलों का सामना करना पड़ा।' इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, 'जिस विमान दुर्घटना में मेरे पिता के निधन की बात कही जाती थी, उस दुर्घटना की जांच के लिए आयोग को ताइवान नहीं जाने दिया गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह राजनीतिक रूप से सही मौका नहीं था।'
अनीता ने कहा, 'मेरा मानना है कि इसकी जांच के लिए बने आखिरी आयोग (मुखर्जी आयोग) को डॉक्युमेंट्स के लिहाज से जरूरी समर्थन नहीं मिला। इसमें एक तरह की ढिलाई बरती गई, लेकिन मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं बता सकती कि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा और आयोग के सदस्यों का निजी अनुभव क्या रहा।' नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त, 1945 को कथित प्लेन क्रैश के बाद रहस्यमयी तरीके से लापता हो गए थे, जिसके बाद से केंद्र सरकार ने उनका पता लगाने के लिए तीन आयोगों का गठन किया। पहले दो आयोगों ने जहां विमान दुर्घटना और नेताजी के निधन की बात सही माना, लेकिन 1999 में बने तीसरे आयोग इस बात को स्वीकर नहीं किया। आयोग ने कहा कि उस दिन ताइवान में कोई विमान हादसा नहीं हुआ था।
मुखर्जी आयोग की आखिरी रिपोर्ट को 2006 में संसद में पेश किया, जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने खारिज कर दिया था।
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