नई दिल्ली ।।
एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव द्वारा पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार को
कई बार सार्वजनिक रूप से नसीहत दिए जाने को लेकर कई तरह के सवाल उठ खड़े
हुए हैं। राजनीतिक गलियारों में यह पूछा जा रहा है कि क्या मुलायम सिंह
अपनी पार्टी की सरकार के लिए स्वयं विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं या फिर
वह अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़ रहे हैं, इसलिए सरकार की सार्वजनिक
आलोचना कर रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या मुलायम को अपने मिशन-2014 की
सफलता पर संदेह ही रहा है?
पिछले एक पखवाड़े में मुलायम सिंह ने कम से कम 3 बार अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव की सरकार की खिंचाई की है। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने गांव सैफई से की थी। तब उन्होंने अखिलेश को सिर्फ समाजवादी पार्टी का नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की जनता का मुख्यमंत्री होने का अहसास दिलाया था। वहीं मुलायम ने अपने छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव से भी अपना विभाग सुधारने की हिदायत दी थी।
पिछले सप्ताह लखनऊ में पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में भी मुलायम सिंह ने पार्टी के सीनियर नेताओं को जमकर लताड़ा। उन्होंने नौकरशाही के बेकाबू होने तथा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का मुद्दा उठाया था। इस बैठक में मुलायम ने कुछ पार्टी नेताओं द्वारा मनमानी करने की भी बात कही थी। माना यह जा रहा है कि इसी डांट के चलते मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रशासनिक स्तर पर कुछ फेरबदल भी की है।
मुलायम के इस कदम पर राजनीतिक क्षेत्रों में 2 तरह की राय है। एक राय है कि नेताजी खुद ही 'विपक्ष' की भूमिका निभा रहे हैं, क्योंकि फिलहाल उत्तर प्रदेश में कोई विपक्षी दल बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं है। सिर्फ मायावती रुक-रुक कर आरोप लगाते रहती हैं। बीजेपी और कांग्रेस करीब-करीब मौन ही है। ऐसे में किसी और को मौका न देते हुए खुद मुलायम सिंह यह भूमिका निभा रहे हैं। जबकि, एक राय यह है कि मुलायम सिंह यादव परेशान हैं। 10 महीने बाद भी अखिलेश सरकार कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पाई है। सांप्रदायिक तनाव और अपराध की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। एक युवा नेता के तौर पर अखिलेश की छवि बननी चाहिए थी वह नहीं बन पा रही है। नौकरशाही हावी है।
यही मुलायम की परेशानी का बड़ा कारण है। उन्हें लगता है कि उनका मिशन 2014 कमजोर पड़ रहा है। पार्टी के नेता लोकसभा चुनावों पर ध्यान देने की बजाए अपने हितों तक सीमित होकर रह गए हैं। इसीलिए उन्होंने अनाधिकृत लोगों की गाड़ियों से लालबत्ती और झंडे उतारने के भी निर्देश दिए थे, लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई।
मुलायम की एक समस्या यह भी है कि उनकी बातों को ज्यादा तव्वजो नहीं दी जा रही है। अवांछित नेताओं का बढ़ता कद ही या फिर कार्यकर्ताओं की समस्याएं मुलायम की सलाह की अनदेखी हो रही है। उन्होंने जो करने को कहा हो उसका उलटा रहा है। मुलायम सिंह के एक करीबी नेता के मुताबिक फिलहाल ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में नेता जी खुद हाशिए पर चले गए हैं। न तो सत्ता के इर्द-गिर्द रहने वाली भीड़ उनके आसपास है और न ही उनकी हर बात को 'ब्रह्मवाक्य' की तरह माना जा रहा है। सत्ता का केंद्र अखिलेश हैं। यह प्रमाणित भी हो रहा है। उक्त नेता के मुताबिक नेता जी नाराजगी की सबसे अहम वजह उनकी बातों को न माना जाना है। वह शायराना अंदाज में कहते हैं- जो जलेबी न बनाए वह हलवाई क्या और जो मान जाए वो सपाई क्या?
पिछले एक पखवाड़े में मुलायम सिंह ने कम से कम 3 बार अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव की सरकार की खिंचाई की है। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने गांव सैफई से की थी। तब उन्होंने अखिलेश को सिर्फ समाजवादी पार्टी का नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की जनता का मुख्यमंत्री होने का अहसास दिलाया था। वहीं मुलायम ने अपने छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव से भी अपना विभाग सुधारने की हिदायत दी थी।
पिछले सप्ताह लखनऊ में पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में भी मुलायम सिंह ने पार्टी के सीनियर नेताओं को जमकर लताड़ा। उन्होंने नौकरशाही के बेकाबू होने तथा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का मुद्दा उठाया था। इस बैठक में मुलायम ने कुछ पार्टी नेताओं द्वारा मनमानी करने की भी बात कही थी। माना यह जा रहा है कि इसी डांट के चलते मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रशासनिक स्तर पर कुछ फेरबदल भी की है।
मुलायम के इस कदम पर राजनीतिक क्षेत्रों में 2 तरह की राय है। एक राय है कि नेताजी खुद ही 'विपक्ष' की भूमिका निभा रहे हैं, क्योंकि फिलहाल उत्तर प्रदेश में कोई विपक्षी दल बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं है। सिर्फ मायावती रुक-रुक कर आरोप लगाते रहती हैं। बीजेपी और कांग्रेस करीब-करीब मौन ही है। ऐसे में किसी और को मौका न देते हुए खुद मुलायम सिंह यह भूमिका निभा रहे हैं। जबकि, एक राय यह है कि मुलायम सिंह यादव परेशान हैं। 10 महीने बाद भी अखिलेश सरकार कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पाई है। सांप्रदायिक तनाव और अपराध की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। एक युवा नेता के तौर पर अखिलेश की छवि बननी चाहिए थी वह नहीं बन पा रही है। नौकरशाही हावी है।
यही मुलायम की परेशानी का बड़ा कारण है। उन्हें लगता है कि उनका मिशन 2014 कमजोर पड़ रहा है। पार्टी के नेता लोकसभा चुनावों पर ध्यान देने की बजाए अपने हितों तक सीमित होकर रह गए हैं। इसीलिए उन्होंने अनाधिकृत लोगों की गाड़ियों से लालबत्ती और झंडे उतारने के भी निर्देश दिए थे, लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई।
मुलायम की एक समस्या यह भी है कि उनकी बातों को ज्यादा तव्वजो नहीं दी जा रही है। अवांछित नेताओं का बढ़ता कद ही या फिर कार्यकर्ताओं की समस्याएं मुलायम की सलाह की अनदेखी हो रही है। उन्होंने जो करने को कहा हो उसका उलटा रहा है। मुलायम सिंह के एक करीबी नेता के मुताबिक फिलहाल ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में नेता जी खुद हाशिए पर चले गए हैं। न तो सत्ता के इर्द-गिर्द रहने वाली भीड़ उनके आसपास है और न ही उनकी हर बात को 'ब्रह्मवाक्य' की तरह माना जा रहा है। सत्ता का केंद्र अखिलेश हैं। यह प्रमाणित भी हो रहा है। उक्त नेता के मुताबिक नेता जी नाराजगी की सबसे अहम वजह उनकी बातों को न माना जाना है। वह शायराना अंदाज में कहते हैं- जो जलेबी न बनाए वह हलवाई क्या और जो मान जाए वो सपाई क्या?
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