Sunday, January 20, 2013

महज सात दिन में आठवां अजूबा


झज्जर। बात नामुमकिन लगती थी, लेकिन अब सौ आने सच है। महज सात दिन में बच्चों ने श्रमदान से स्कूल की इमारत खड़ी कर दी और जंगलनुमा इलाके को खूबसूरत पार्को में तब्दील कर दिया। सामूहिक प्रयास का परिणाम है कि मूक बधिर बच्चों को स्कूल मिला। साथ ही चार हजार बच्चों बच्चों को टीम के रूप में काम करने के संस्कार और प्रशासन को एक प्रेरणा मिली।
हरियाणा के झज्जर में एक खंडहर को स्कूल में बदलने की योजना उपायुक्त अजीत बाला जोशी के दिमाग की उपज है। 'प्रयास', अल्ट्रासाउंड मशीनों में ट्रैकिंग सिस्टम और 'तरुयात्रा' जैसे अभियानों से वाहवाही लूट चुके जोशी ने सारा खाका तैयार किया। अभियान कहीं पर ठहरे नहीं, इसके लिए नौ अफसरों की टीम गठित की गई। फिर प्रशासन ने उन सभी लोगों से मदद की अपील की, जो इस लायक थे। भट्ठे वालों ने ईट दी और जेके सीमेंट कंपनी से सीमेंट आई। बाकी के लिए पंचायतों ने दिल खोलकर सहायता की। एनएसएस, एनसीसी, स्काउट एवं गाइड और सीनियर स्वयंसेवी छात्र-छात्राओं ने 11 जनवरी से काम शुरू किया। साढ़े तीन एकड़ जमीन को समतल करके निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर चला। सप्ताह खत्म हुआ और मानसिक, आशक्त एवं मूकबधिर बच्चों के लिए स्कूल व दो नए पार्क विकसित हो चुके हैं। 11 हजार वर्ग फुट क्षेत्र में पार्क व ऑफिस के साथ आठ क्लॉस रूम तैयार होने को हैं।
कच्चा बाबरा रोड स्थित नगर पालिका कार्यालय के साथ लगते भूखंड पर 11 जनवरी की सुबह तक मिट्टी का ढेर ही नजर आता था। सात दिन में फिजा ही बदल गई। सात दिन में भवन में दो लाख से ज्यादा ईटें लगा दी गई हैं। स्वयंसेवकों ने भवन की दीवारों के लिए पेंटिंग्स का संग्रह तैयार किया है। रेल आने की खुशी, तरुयात्रा की झलक इनमें दिखती है। पेंटिंग के अलावा पार्क में झूले भी पहुंच चुके हैं। अभियान की सफलता से संतुष्ट डीसी अजीत बाला जी जोशी का कहना है कि इस तरह से भवन तैयार होना बेमिसाल है। ऐसा अभी तक देश में कहीं भी नहीं हुआ। एक पैसा खर्च किए बगैर प्रशासन ने स्कूल व पार्क तैयार किए। जिन लोगों ने योगदान किया है, उनके नाम स्कूल के प्रवेश द्वार पर एक बोर्ड पर लिखे जाएंगे।

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