Sunday, January 27, 2013

गणतंत्र के साथ दिखी 'जन' तंत्र की भी ताकत


नई दिल्ली। देश के 64वें गणतंत्र दिवस की परेड केवल सैन्य ताकत व सांस्कृतिक विविधता की नुमाइश से कुछ ज्यादा थी। राजपथ पर इस बार शक्ति व साम‌र्थ्य प्रदर्शन के साथ बीते दिनों मिले कई घावों व बदलाव के लिए घुमड़ते जज्बे की स्मृतियां भी रह-रह कर कौंधती रहीं। शनिवार को चटख धूप के बीच भी उन मोमबत्तियों की रोशनी महसूस हो रही थी जो बीते बारह महीनों के दौरान कभी भ्रष्टाचार, काले धन और एक युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म व उसकी मौत के खिलाफ सड़क पर उतरे हजारों लोगों ने राजपथ व इंडिया गेट पर जलाईं थी।
ठीक एक माह पहले 26 दिसंबर 2012 को दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार 23 वर्षीय युवती को इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया था। वह युवती तो जीवित नहीं लौटी, लेकिन उसके साथ देश में महिलाओं की सुरक्षा पर छिड़ी आंदोलनकारी बहस का असर तब भी दिखा जब जनता राजपथ पर गणतंत्र दिवस की निहार रही थी। दर्शक की भूमिका में ही सही, परेड में आए लोगों के बीच 22-23 दिसंबर को हुए लाठीचार्ज व आंसूगैस के अनुभव उठते रहे। इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति पर श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए प्रधानमंत्री का काफिला जब राजपथ से गुजर रहा था लगभग तभी परेड का आंखों देखा हाल सुना रहे कमेंटेटर्स की आवाज गूंज रही थी कि 'बीते एक वर्ष को हम ऐसे साल के तौर पर याद करेंगे जिसने देश को गंभीर आत्मविश्लेषण और बदलाव के लिए प्रेरित किया। इस दौरान हमने अपने युवाओं को जाग्रत होते, बेहतर देश व बेहतर जीवन के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति व संकल्प के साथ आवाज उठाते देखा।
पूरी दुनिया में प्रसारित कमेंट्री में सुखद बदलाव के तौर पर पहली बार कहा गया,'लोगों की नाराजगी सिर्फ सड़क तक सीमित नहीं रही है,बल्कि ऑनलाइन व सोशल मीडिया में भी काफी चर्चा का सबब बनी। फलस्वरूप नई ताकत व नए माध्यम का जन्म हुआ जिसे मान्यता व सम्मान मिला है।' इस बारे में पूछे जाने पर कमेंटरी तैयार करने वाली टीम के एक अधिकारी ने कहा, बीते दिनों दिल्ली, खासकर राजपथ पर जो घटा उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। लिहाजा हमारी कोशिश उसे प्रासंगिक बनाने की थी। शायद सरकार देश की बेचैनी का इजहार खुद भी करना चाह रही थी।
इसे संयोग कहिए या समझी-बूझी कोशिश कि परेड के विशेष अतिथि भूटान नरेश जिग्मे खेसर नाम्ग्याल वांगचुक भी सबसे युवा राष्ट्र प्रमुख हैं। भारत के सबसे छोटे पड़ोसी मुल्क के युवा नरेश व उनकी पत्नी की मौजूदगी में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल की पहली गणतंत्र दिवस परेड की सलामी ली।
करीब डेढ़ घंटे की परेड के दौरान जनता ने दिल्ली पुलिस के मार्चिग दस्ते की भी तालियों से हौसला अफजाई की। यह शायद हिफाजत और बराबरी को लेकर महिलाओं के हक पर छिड़ी बहस का असर था कि जब मैकेनाइज्ड मार्चिग कॉलम में रासायनिक, जैविक व नाभिकीय रेकी वाहन दस्ते की कमान लेफ्टिनेंट अर्चना चौधरी के हाथ दिखी तो लोग सहसा तालियां बजाने लगे। राष्ट्रीय कैडेट कोर के ग‌र्ल्स मार्चिग दस्ते को भी जोरदार उत्साहव‌र्द्धन मिला। हालांकि सशस्त्र सेनाओं के मार्चिग दस्तों में सिर्फ वायुसेना के दस्ते की कमान महिला अधिकारी लेफ्टिनेंट हिना पोरे के हाथ थी।
अग्नि-5 से चौड़ा हुआ सीना
नई दिल्ली। परेड में पहली बार शामिल अग्नि-5 मिसाइल जब सलामी मंच के आगे से गुजरी तो पूरा इलाका तालियों से गूंज उठा। परेड में पारंपरिक से लेकर नाभिकीय क्षेत्र तक में सैन्य चुनौतियों के मुकाबले अपनी मुस्तैद तैयारियों का नजारा पेश किया गया। जोर स्वदेशी क्षमता की नुमाइश पर था। पांच हजार किमी से ज्यादा दूरी तक अचूक वार करने वाली अंतरमहाद्वीपीय अग्नि-5 मिसाइल, मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन, हर मौसम में कारगर ब्रह्मोस मिसाइल, पिनाक मल्टी बैरल राकेट लांचर सिस्टम, सर्वत्र सेतु प्रणाली व उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर ध्रुव ने हिफाजत का हौसला बढ़ाया। नौसेना की झांकी में परमाणु पनडुब्बी आइएनएस चक्र और इस साल के अंत तक मिलने वाले विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रमादित्य [गोर्शकोव] का मॉडल पेश किया गया।
परेड में थल सेना के आठ मार्चिग दस्तों और चार बैंड दस्तों ने शिरकत की। नौसेना ने 144 जवानों के दस्ते के साथ समुद्री सरहद की सुरक्षा तैयारियों पर मुस्तैदी की झांकी पेश की। नौसेना के 81 वादकों वाले बैंड की अगुवाई मास्टर चीफ पेटी अधिकारी रमेश चंद्र कटोच के हाथ थी, जो बीते 26 सालों से परेड में इसका नेतृत्व कर रहे हैं।
एक महिला अधिकारी की अगुवाई में वायुसेना के चुस्त जवानों के दस्ते ने 12 बाई 12 की फार्मेशन में राष्ट्रपति को सलामी दी। वायुसेना की झांकी में स्वदेशी अवॉक्स प्रणाली से लैस एंब्रेयर विमान और अतिविशिष्ट लोगों के लिए खरीदे गए एडब्ल्यू-101 हेलीकॉप्टर का मॉडल नजर आया। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने अग्नि-5 मिसाइल के अलावा जल और थल पर कारगर आर्मर्ड एंफीबियस डोजर भी दिखाया जो रेगिस्तान से लेकर तटीय इलाकों में युद्ध के दौरान इंजीनियरिंग मदद देने में सक्षम है। परेड में अ‌र्द्धसैनिक बल के जवानों के नौ दस्ते और आठ बैंड भी शामिल थे।
वायु शक्ति का नजारा
परेड में भारतीय वायुसेना ने अपनी गति और शक्ति का नजारा पेश किया। परेड की शुरुआत जहां वायुसेना बेड़े में पिछले साल शामिल एमआइ-17 वी 5 हेलीकॉप्टर की पुष्पवर्षा से हुई। वहीं समापन देश के सबसे ताकतवर लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआइ के हवाई करतब से हुआ।
परेड में वायुसेना के 22 विमान, 7 हेलीकॉप्टरों के अलावा थलसेना की एविएशन कोर के तीन ध्रुव हेलीकाप्टर भी शामिल थे। परेड के अंतिम चरण में वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने अपनी रफ्तार और शक्ति की बानगी पेश की। परेड में पहली बार अमेरिका से खरीदे गए उन्नत सी-130जे विमानों ने भी शिरकत की। राजपथ के आसमान में 300 किमी की रफ्तार से गुजरे इस विमान के विशाल आकार के मुकाबले बेहद कम आवाज ने भी दर्शकों को चौंकाया।
फ्लाय पास्ट की शुरुआत तीन एमआइ-35 युद्धक हेलीकॉप्टरों की उड़ान से हुई। रूसी मूल के एक आइएल-78, दो एएन-32 और दो डोर्नियर विमानों ने वायुसेना की रसद आपूर्ति व मालढोही क्षमताओं का नमूना पेश किया। दुश्मन के इलाके में घुसकर मार करने में सक्षम जैगुआर विमान और उन्नत लड़ाकू क्षमता से लैस मिग-29 लड़ाकू विमानों की गरज से इलाका थर्रा गया। वहीं पलक झपकते रायसीना पहाड़ी से इंडिया गेट पार कर गए तीन सुखोई-30 विमानों ने आसमान में त्रिशूल का आकार खींच दिया। फ्लायपास्ट के अंत में एक अकेले सुखोई-30 युद्धक विमान ने हवा में कलाबाजियों का करतब दिखा दर्शकों को मोह लिया।
परेड में दिखी तालमेल की कमी
परेड को चाक-चौबंद व चुस्त बनाने की तमाम कोशिशों के बावजूद तालमेल में खामियां खुल कर नजर आई। कमेंट्री व मार्चिग दस्तों के बीच सामंजस्य बार-बार लड़खड़ाया। उन्नत हल्के ध्रुव हेलीकॉप्टरों का परिचय तब कराया गया जब वो लगभग सलामी मंच पार कर चुके थे। परेड की रोचकता बनाए रखने को दस्तों के बीच का समय भी करीब 12 मिनट घटाया गया।
पूरी परेड के दौरान कई बार महसूस किया गया कि या तो मार्चिग दस्ते काफी कम अंतराल में आए या उनके लिए टकटकी लगाए ताकते रहना पड़ा। दरअसल, तालमेल की कमी परेड की शुरुआत में ही उजागर हो गई थी, जब परेड कमांडर व दिल्ली के जनरल ऑफिसर कमांडिंग सुब्रतो मित्रा और डिप्टी कमांडर मेजर जनरल राजबीर सिंह के बीच काफी अंतराल हो गया।
इन खामियों के बारे में पूछे जाने पर रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि इस तरह की कमियों से बचने के लिए ही रिहर्सल पर जोर दिया जाता है। कोई कमी न रहे इसके लिए बाकायदा राजपथ पर विशेष संकेत चिह्न भी लगाए गए हैं, ताकि कमेंट्री कर रहे लोगों को सलामी मंच के सामने से गुजरने वाले दस्ते या झांकी के बारे में बोलते समय आसानी रहे।
प्रदेशों की झांकियों के साथ नृत्य प्रस्तुति देने वाली कोई भी सांस्कृतिक टोली इस बार नहीं थी। झांकियों की संख्या भी 19 रखी गई जिसमें केंद्रीय मंत्रालयों की केवल पांच झांकियां थीं।

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